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Paschatya Samaj Vaigyanik sidhant ( Western Sociological Theory)

अध्ययन के दौरान ही डॉ. तीरविजय सिंह ने समाजशास्त्र के विद्यार्थी के रूप में अपनी विशेष पहचान बना ली थी। 90 के दशक का सामयिक व ज्वलंत मुद्दा नक्सली आंदोलन और हिंसा पर देश के समाजशास्त्रियों की पैनी निगाह थी। तब बिहार का दक्षिण-मध्य इलाका पूरी तरह नक्सली हिंसा और उसके प्रतिशोध में धधक रहा था। ऐसे संवेदनशील काल में तीरविजय सिंह ने बतौर अध्येता पारस बिगहा, कंसारा, अरवल, नोनही नगवा, शंकर बिगहा, नारायणपुर, सेनारी आदि दर्जनभर के करीब नरसंहारों के लिए ख्यात बिहार के जहानाबाद जिले को अध्ययन क्षेत्र के रूप में चुना। 1993 में भूमि सुधार और जाति संघर्ष पर शोध प्रबंध पूरा होने के कुछ ही दिनों बाद अध्यापन का शौक पूरा करने का अवसर मिला। इस दौरान स्वतंत्र पत्रकार के रूप में वाराणसी से प्रकाशित स्वतंत्र भारत समाचार पत्र से भी जुड़े रहे। जनवरी 1994 से वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के सहकारी पीजी कॉलेज में अगले पांच वर्षों तक स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन का अनुभव अर्जित करते रहे। भारतीय सामाजिक व्यवस्था पर पहली पुस्तक लिखी जिसका नाम समकालीन भारतीय समाज है।

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अध्ययन के दौरान ही डॉ. तीरविजय सिंह ने समाजशास्त्र के विद्यार्थी के रूप में अपनी विशेष पहचान बना ली थी। 90 के दशक का सामयिक व ज्वलंत मुद्दा नक्सली आंदोलन और हिंसा पर देश के समाजशास्त्रियों की पैनी निगाह थी। तब बिहार का दक्षिण-मध्य इलाका पूरी तरह नक्सली हिंसा और उसके प्रतिशोध में धधक रहा था। ऐसे संवेदनशील काल में तीरविजय सिंह ने बतौर अध्येता पारस बिगहा, कंसारा, अरवल, नोनही नगवा, शंकर बिगहा, नारायणपुर, सेनारी आदि दर्जनभर के करीब नरसंहारों के लिए ख्यात बिहार के जहानाबाद जिले को अध्ययन क्षेत्र के रूप में चुना। 1993 में भूमि सुधार और जाति संघर्ष पर शोध प्रबंध पूरा होने के कुछ ही दिनों बाद अध्यापन का शौक पूरा करने का अवसर मिला। इस दौरान स्वतंत्र पत्रकार के रूप में वाराणसी से प्रकाशित स्वतंत्र भारत समाचार पत्र से भी जुड़े रहे। जनवरी 1994 से वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के सहकारी पीजी कॉलेज में अगले पांच वर्षों तक स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन का अनुभव अर्जित करते रहे। भारतीय सामाजिक व्यवस्था पर पहली पुस्तक लिखी जिसका नाम समकालीन भारतीय समाज है।