गंतव्य की संप्राप्ति कई पड़ावों से होकर गुजरने से ही संभावित है। पड़ावों से होकर गुजरने से कई स्वर, जीवन की कई रागनियां स्वत: एक साथ समाहित हो जाती हैं। इन्हीं का समुच्चय रूप आनंद है – सबका समीकृत रूप, दर्शन का सर्वोच्च सर्वोत्तम तत्व!
जो सत्य एक है, उसे व्यक्त करने के रूप अनेक हैं। ठीक वैसे ही साहित्य, जिसे सहित्य भाव से उपमित किया जाता है, जिसमें अभिव्यक्ति की कई एक विधाएं विधमान रहती हैं, परन्तु संप्रेषणीयता का स्वर एक होता है। साहित्य की यही पहचान है।
Author Name | Dinesh Dharampal |
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Author |
Dinesh Dharampal |
Publisher |
Namya press |
Series |
Hardcover |
Editorial Review
गंतव्य की संप्राप्ति कई पड़ावों से होकर गुजरने से ही संभावित है। पड़ावों से होकर गुजरने से कई स्वर, जीवन की कई रागनियां स्वत: एक साथ समाहित हो जाती हैं। इन्हीं का समुच्चय रूप आनंद है - सबका समीकृत रूप, दर्शन का सर्वोच्च सर्वोत्तम तत्व!
जो सत्य एक है, उसे व्यक्त करने के रूप अनेक हैं। ठीक वैसे ही साहित्य, जिसे सहित्य भाव से उपमित किया जाता है, जिसमें अभिव्यक्ति की कई एक विधाएं विधमान रहती हैं, परन्तु संप्रेषणीयता का स्वर एक होता है। साहित्य की यही पहचान है।
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