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समय के बदलाव के साथ.साथ प्रचलन की दृष्टि से विभिन्न साहित्यिक विधाओं के महत्त्व में न्यूनाधिक अंतर आया है। अपने मशीनी जीवन के कारण आज का औसत मानव प्रायः समय की कमी का रोना रोते हुए ही मिलेगा। जीविकोपार्जन हेतु मकड़ी के जाले से भी सूक्ष्म बुने गए समय विभाजन के ताने.बाने से कुछ समय साहित्य के लिए निकाल पाना उसके लिए या तो संभव ही नहींए या फिर यदि वह थोड़ा समय निकालता भी है तो वह ऐसा कुछ पढ़ना चाहता है जो उस थोड़े से समय में भी पूरा पढ़ा जा सके और साथ ही साथ उसे संतुष्टि भी प्रदान करे। वैसे भी आजकल मस्तिष्क की कसरत कुछ अधिक ही बढ़ गई है और ऐसे में औसत पाठक किसी गूढ़ एवं गंभीर विषय में जाकर बुद्धि का और अधिक व्यायाम नहीं करना चाहता। शायद यह भी एक कारण है कि अतीत में साहित्य की अनेक प्रतिष्ठित विधाओं के पाठकों की संख्या में सतत कमी होती चली जा रही है। उपर्युक्त परिस्थितियाँ कहानी के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण सुलभ करवाती हैं। फलतरू इस विधा के प्रचलन में आधुनिक युग में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। जानी.पहचानी भाषा.शैली में अपने ही परिवेश की बात जब कहानी के रूप में पाठक के समक्ष प्रस्तुत होती है तो यह निश्चित तौर पर उसके अंतरूकरण पर चिरस्थाई प्रभाव डालती है। यही कारण है कि आंतरिक ग्राम्यांचलों के अबोध कहलाने वाले ग्रामीण भी कहानी का रसास्वादन करते मिल सकते हैंए जबकि यही बात अन्य सभी विधाओं पर लागू नहीं होती। जहाँ तक कहानी.रचना की पृष्ठभूमि का प्रश्न है.कोरी कल्पना का शब्दजाल कभी भी सुधी पाठकों के हृदयों पर चिरस्थाई छाप नहीं छोड़ सकता और इस प्रकार वह विद्वतापूर्ण होने पर भी रीतिकालीन काव्य की तरह जनसाधारण द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है। |
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