हिया की बतियाँ अर्थात मन की बातें। मन में हज़ारों विचार एक साथ जब विचरते हैं तो उनमे से बस कुछ ही मस्तिष्क पर छाप छोड़ पाते हैं। बाकी पटल से गायब हो जाते हैं । कुछ विचार ही शब्दों का परिधान पहनकर कभी गद्य में तो कभी पद्य में सृजन का शरीर धारण कर पाते हैं। ये काव्य संकलन “हिया की बतियाँ ” उन्ही विचारों का शब्द मूर्त रूप शरीर का जीवित रूप है।
अच्छे बुरे ,आड़े तिरछे ,उलटे पुलटे ,परिपक़्व-अपरिपक़्व , छंद में अछन्द में , आयोजित प्रायोजित कैसे भी विचार मन में आएं,उनका मंथन बहुत आवश्यक है। क्योंकि वैचारिक मंथन से ही समाज की यथास्तिथि का पता चलता है और भविष्य का मार्ग सुझाव या अग्रिम चेतावनी के साथ समझ आता है।
इस संकलन में मन में जो भी आया जैसे भी आया वो अक्षरशः मैंने कागज़ पर लिख दिया है।
ये ही तो हैं हिया की बतियाँ जो आप की भी हैं शायद …..