दुनिया में व्यक्ति इस बात के लिए भी जाना जाता है कि वह कहाँ का रहने वाला है। ब्रिटिश भारत में बीसवीं सदी के प्रथम दशक तक बिहारियों की अपनी कोई अलग पहचान नहीं थी। यही सवाल 1892 में सच्चिदानंद सिन्हा से लंदन में उनके कुछ मित्रों ने किया था और उन्होंने जब बताया कि वे बिहार के रहने वाले हैं तब उनका मजाक यह कहकर उड़ाया गया कि भारत के नक़्शे में बिहार तो कहीं है ही नहीं। दरअसल बिहार उन दिनों बंगाल का एक इलाका मात्र था। बिहार को बंगाल का पिछलग्गू कहा जाता था। वह घटना सच्चिदानंद सिन्हा के दिल पर लगी एक खरोंच की तरह थी। फिर उनके साथ मिलकर उन दिनों के बिहारियों ने बिहार को अपनी एक अलग पहचान दिलाने के लिए बंगाल के साथ एक लम्बी लड़ाई लड़ी और 1911 में वे सफल हुए। इन्हीं घटनाओं को इस पुस्तक में एक फिक्शन के रूप में दिखाया गया है जिसमें घटनाओं के सारे पात्र और स्थान असली है।
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