औपनिवेशिक काल में भारत का इतिहास सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनैतिक परविर्तनों से गुजरा है। इस समयान्तराल में इस उप महाद्वीप ने जहॉ अहिंसावादी महात्मा गांधी और क्राँतिकारी भगत सींग जैसी विश्व विभूतियों को जन्म दिया वहीं सामाजिक परिवर्तनात्मक घटनाओं को जन्म दिया। प्राचीनकाल से विद्यमान विविधता व अनिकेता ने भारतीय समाज में ऐसे विरोधाभसों एवं विसंगतियों को जन्म दिया जो कालांतर में भारतीय समाज का अभिन्न अंग बन गई। चिन्तन विश्वास एवं आचरण के प्रायः सभी पक्षों में असंगति व अन्तर्विरोध भारतीय समाज में आसानी से देखे जा सकते है। अस्पृश्यता इनमें से एक है।
औपनिवेशक भारत में धार्मिक, सामाजिक, औद्योगिक और वैज्ञानिक क्रांति ने समस्त भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित किया। विज्ञान ने ज्ञान के अद्भुत चक्षु खोल दिये। इंग्लैण्ड वासी व्यापार के लिए भारत में फैल गए। ये समुद्र और पृथ्वी के सम्राट बन गए। लेकिन भारत के लोग अभी तक रूढ़ियों, अंधविश्वासों, धार्मिक, संकीर्णताओं और देवी-देवताओं की मान्यताओं के अज्ञान में जकड़े हुये थे। भारत में लगभग आधी आबादी दास्ता बेगार, अस्पृश्यता और जातिवाद के मकड़जाल में फंसी रही। इनमें से अस्पृश्यता तो भारतीय समाज में जाति व्यवस्था के नाम पर अभिशाप और कलंक थी और है। इसकीं जड़ें इतनीं गहरीं हैं कि महात्मा बुद्ध से लेकर महात्मा गांधी तक अनेक महापुरूषों ने इसके निवारण के लिए प्रयास किये हैं, किन्तु यह किसी न किसी रूप में समाज में आज भी व्याप्त है।