अयोध्या राम जन्मभूमि मुकदमा भगवान को न्याय देने वाला अपनी तरह का दुनिया का पहला और अनोखा केस था। भगवान श्रीराम जन्मभूमि विवाद का फैसला सबके सामने है लेकिन इसके अनेक दिलचस्प और महत्वपूर्ण पहलू आम लोगों की नजरों में अभी तक आए ही नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की सुनवाई के दौरान सुबह से शाम तक हर पक्ष के तेवरों और दलीलों के चश्मदीद के तौर पर ‘अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम ’ लिखी गई है। जिरह के इतने रंग शायद किसी केस में नहीं मिले। 92 साल के किस दिग्गज वकील ने पूरे अयोध्या केस के दौरान खड़े रहकर बहस की। बैठकर जिरह करने की बात पर इस दिग्गज के आंसू बहने लगते थे। झांसी की रानी का इलाज करने वाले धार्मिक संगठन का इस केस से क्या लेना-देना था, औरंगजेब की सेना में इटली के कमांडर ने मस्जिद के बारे में क्या लिखा। गुरु नानक देव बाबर के भारत आने से पहले अयोध्या गए और उन्होंने वहां राम से जुड़े किन तथ्यों को बयान किया था। इन सब सवालों के जवाब के साथ विदेशी यात्रियों के हवाले से किस तरह वकीलों ने अपने तरीके से मंदिर और मस्जिद का विवादित स्थल पर होना सिद्ध करने का प्रयास किया। मुस्लिम पक्ष ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी उस जगह पर अपना दावा सिद्ध करने में। मध्यस्थता के अटकने के बाद सुनवाई का सिलसिला तेजी से बढ़ा। के. परासरन, राजीव धवन, सी.एस. वैद्यनाथन, पी.एन. मिश्रा, जफरयाब जिलानी, मीनाक्षी अरोड़ा, एस.के. जैन जैसे दिग्गज वकीलों के बीच जिरह एक वाक् युद्ध में बदल गई थी। ये दो पक्षों का नहीं दो जनसमूहों का मुकदमा था। दोनों पक्ष केस को इससे ज्यादा हैसियत का मानकर चले। पुस्तक में कानूनी जटिलता से भरी भाषा नहीं रखी है और पूरे केस को एक कहानी की तरह कहने की कोशिश की गई है। इसमें हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र है तो उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में हुई अपीलों के कानूनी आधार से लेकर बेहद महत्वपूर्ण एएसआइ (भारत पुरातत्व सर्वे) की रिपोर्ट के निष्कर्ष शामिल हैं। अदालत के भीतर के अलावा बाहर की भी अनेक आंखों देखी घटनाओं को लिखा गया है। फैसले के बाद पुस्तक को लिखने में वक्त लगा और कोरोना लॉकडाउन आ गया जो कि प्रकाशन में विलंब की एक बड़ी वजह रहा। हालांकि इस दौरान अयोध्या से दिल्ली तक के घटनाक्रम को भी इसमें शामिल कर लिया गया। उम्मीद है ये पुस्तक राम जन्मभूमि केस से जुड़े बिल्कुल नए पहलुओं से आपको अवगत कराएगी। जागरूक पाठकों के साथ खासकर कानून के छात्रों को अयोध्या केस की बारीक दलीलें लिखित तौर पर शायद हिंदी में और कहीं मिलेंगी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी नहीं। |
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Ayodhya Se adalat tak Bhagwan Shri Ram 2nd Edition PB
अयोध्या राम जन्मभूमि मुकदमा भगवान को न्याय देने वाला अपनी तरह का दुनिया का पहला और अनोखा केस था। भगवान श्रीराम जन्मभूमि विवाद का फैसला सबके सामने है लेकिन इसके अनेक दिलचस्प और महत्वपूर्ण पहलू आम लोगों की नजरों में अभी तक आए ही नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की सुनवाई के दौरान सुबह से शाम तक हर पक्ष के तेवरों और दलीलों के चश्मदीद के तौर पर ‘अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम ’ लिखी गई है। जिरह के इतने रंग शायद किसी केस में नहीं मिले। 92 साल के किस दिग्गज वकील ने पूरे अयोध्या केस के दौरान खड़े रहकर बहस की। बैठकर जिरह करने की बात पर इस दिग्गज के आंसू बहने लगते थे। झांसी की रानी का इलाज करने वाले धार्मिक संगठन का इस केस से क्या लेना-देना था, औरंगजेब की सेना में इटली के कमांडर ने मस्जिद के बारे में क्या लिखा। गुरु नानक देव बाबर के भारत आने से पहले अयोध्या गए और उन्होंने वहां राम से जुड़े किन तथ्यों को बयान किया था। इन सब सवालों के जवाब के साथ विदेशी यात्रियों के हवाले से किस तरह वकीलों ने अपने तरीके से मंदिर और मस्जिद का विवादित स्थल पर होना सिद्ध करने का प्रयास किया। मुस्लिम पक्ष ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी उस जगह पर अपना दावा सिद्ध करने में। मध्यस्थता के अटकने के बाद सुनवाई का सिलसिला तेजी से बढ़ा। के. परासरन, राजीव धवन, सी.एस. वैद्यनाथन, पी.एन. मिश्रा, जफरयाब जिलानी, मीनाक्षी अरोड़ा, एस.के. जैन जैसे दिग्गज वकीलों के बीच जिरह एक वाक् युद्ध में बदल गई थी। ये दो पक्षों का नहीं दो जनसमूहों का मुकदमा था। दोनों पक्ष केस को इससे ज्यादा हैसियत का मानकर चले। पुस्तक में कानूनी जटिलता से भरी भाषा नहीं रखी है और पूरे केस को एक कहानी की तरह कहने की कोशिश की गई है। इसमें हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र है तो उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में हुई अपीलों के कानूनी आधार से लेकर बेहद महत्वपूर्ण एएसआइ (भारत पुरातत्व सर्वे) की रिपोर्ट के निष्कर्ष शामिल हैं। अदालत के भीतर के अलावा बाहर की भी अनेक आंखों देखी घटनाओं को लिखा गया है। फैसले के बाद पुस्तक को लिखने में वक्त लगा और कोरोना लॉकडाउन आ गया जो कि प्रकाशन में विलंब की एक बड़ी वजह रहा। हालांकि इस दौरान अयोध्या से दिल्ली तक के घटनाक्रम को भी इसमें शामिल कर लिया गया। उम्मीद है ये पुस्तक राम जन्मभूमि केस से जुड़े बिल्कुल नए पहलुओं से आपको अवगत कराएगी। जागरूक पाठकों के साथ खासकर कानून के छात्रों को अयोध्या केस की बारीक दलीलें लिखित तौर पर शायद हिंदी में और कहीं मिलेंगी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी नहीं। |
Weight | .500 kg |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
Author |
Mala Dixit |
Publisher |
Namya press |
Series |
Paperback |
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