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यह उपन्यास बिहार तथा झारखंड के संथाल परगना की सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था को उजागर करने वाले उन पत्रकारों के जीवन और कर्तव्यों पर आधारित है जिन्होंने अपने कर्मों से बड़े-बड़े लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया कि दरअसल छोटे शहरों और कस्बों में काम करने वाले पत्रकार ही असली पत्रकार होते हैं जो पत्रकारिता की चमक -दमक से दूर जंगलों, पहाड़ों और नदियों को पार कर जनता के लिए सही खबरें लाते हैं। फिर भी उन्हें कभी भी वह सम्मान नहीं मिलता जिनके वे हकदार होते हैं। सरल भाषा में लिखी गयी यह किताब सत्य घटनाओं पर आधारित है।
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