मेरा यह मानना है कि अब सामान्य जन का भी कलम उठाना जरूरी हो चला हैl सत्ता हमेशा से सच लिखने वालों को प्रताड़ित करती है, यह कोई नई बात नहीं है पर अब इसका पैमाना लगातार पहले से बड़ा होता जा रहा हैl अब तो लोकतांत्रिक सरकार की नीतियों का विरोध भी किसी को टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य बना सकता है, आप अर्बन नक्सल करार दिए जा सकते हैं, आप देशद्रोही करार दिए जा सकते हैं, आप किसी भगवा भीड़ द्वारा मारे जा सकते हैl इतना तो तय है कि सरकारी इशारों पर चलने वाली सोशल मीडिया पर काबिज ट्रोल आर्मी आपका लगातार जनाजा निकालती रहेगीl
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र के इतिहास के गर्त में समां चुकी हैl जिस लोकतंत्र में न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं हो, मीडिया घराने केवल सरकार का प्रचार तंत्र बन चुके हों, सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण हो, उस लोकतंत्र में अभिव्यक्ति खतरनाक और आपराधिक शब्द बन चुका है, और आजादी शब्द से तो सरकार भी नफरत करती हैl पर, अभिव्यक्ति के खतरे तो उठाने ही पड़ेंगेl
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