मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद बंगाल अपनी ऐंठन में जी रहा था। यही वक़्त था जब नागपुर के मराठा सरदार राघोजी भोंसले की सेना ने 1742 में बंगाल पर पहला आक्रमण किया। प्रथम आक्रमण का नेतृत्व मराठों के सबसे शक्तिशाली सेनापति भाष्कर राव ने किया था, जिसके साथ खतरनाक बरगी सैनिक थे। उस समय बंगाल का नवाब अलीवर्दी खां था, जो अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से बंगाल, बिहार, उड़ीसा और वर्त्तमान बांग्लादेश पर राज करता था। प्रथम आक्रमण में मराठों ने बंगाल और उड़ीसा के बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया। मराठों के इस आक्रमण से ईस्ट इंडिया कम्पनी इतनी भयभीत थी कि उसने फोर्ट विलियम की सुरक्षा के लिए कलकत्ता में एक विशाल गड्ढे का निर्माण कराया, जिसे ‘मराठा डिच’ कहा जाता था। मराठों के दूसरे आक्रमण में नागपुर के मराठा सरदार सेना साहिब राघोजी भोंसले खुद विशाल सेना के साथ बंगाल आए। किन्तु अलीवर्दी खां ने एक चाल चली। उसने अपनी सुरक्षा के लिए राघोजी भोंसले के दुश्मन पेशवा वालाजी राव को बंगाल में आमंत्रित किया। पेशवा वालाजी राव अपने चालीस हजार घुड़सवार सेना के साथ बंगाल आए और राघोजी भोंसले को पराजित कर दिया। किन्तु पेशवा के वापस चले जाने के बाद नागपुर के मराठे रुके नहीं। उन्होंने बंगाल पर फिर से आक्रमण किया। अब नवाब अलीवर्दी खां ने षड्यंत्र का सहारा लिया और भाष्कर राव सहित मराठों के बाईस सिपहसालारों की धोखे से हत्या करवा दी। फिरभी मराठे लगातार आक्रमण करते रहे और अंत में अलीवर्दी खां ने जब छत्रपति शाहूजी माहराज को चौथ (कर) देना स्वीकार किया, तब एक समझौते के तहत मराठों ने बंगाल पर आक्रमण बंद कर दिए। रहस्य और रोमांच से भरे इस पुस्तक के सभी पात्र, स्थान और घटनाएँ सत्य हैं।
Maratha Raftar
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद बंगाल अपनी ऐंठन में जी रहा था। यही वक़्त था जब नागपुर के मराठा सरदार राघोजी भोंसले की सेना ने 1742 में बंगाल पर पहला आक्रमण किया। प्रथम आक्रमण का नेतृत्व मराठों के सबसे शक्तिशाली सेनापति भाष्कर राव ने किया था, जिसके साथ खतरनाक बरगी सैनिक थे। उस समय बंगाल का नवाब अलीवर्दी खां था, जो अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से बंगाल, बिहार, उड़ीसा और वर्त्तमान बांग्लादेश पर राज करता था। प्रथम आक्रमण में मराठों ने बंगाल और उड़ीसा के बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया। मराठों के इस आक्रमण से ईस्ट इंडिया कम्पनी इतनी भयभीत थी कि उसने फोर्ट विलियम की सुरक्षा के लिए कलकत्ता में एक विशाल गड्ढे का निर्माण कराया, जिसे ‘मराठा डिच’ कहा जाता था। मराठों के दूसरे आक्रमण में नागपुर के मराठा सरदार सेना साहिब राघोजी भोंसले खुद विशाल सेना के साथ बंगाल आए। किन्तु अलीवर्दी खां ने एक चाल चली। उसने अपनी सुरक्षा के लिए राघोजी भोंसले के दुश्मन पेशवा वालाजी राव को बंगाल में आमंत्रित किया। पेशवा वालाजी राव अपने चालीस हजार घुड़सवार सेना के साथ बंगाल आए और राघोजी भोंसले को पराजित कर दिया। किन्तु पेशवा के वापस चले जाने के बाद नागपुर के मराठे रुके नहीं। उन्होंने बंगाल पर फिर से आक्रमण किया। अब नवाब अलीवर्दी खां ने षड्यंत्र का सहारा लिया और भाष्कर राव सहित मराठों के बाईस सिपहसालारों की धोखे से हत्या करवा दी। फिरभी मराठे लगातार आक्रमण करते रहे और अंत में अलीवर्दी खां ने जब छत्रपति शाहूजी माहराज को चौथ (कर) देना स्वीकार किया, तब एक समझौते के तहत मराठों ने बंगाल पर आक्रमण बंद कर दिए। रहस्य और रोमांच से भरे इस पुस्तक के सभी पात्र, स्थान और घटनाएँ सत्य हैं।
Weight | 0.400 kg |
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Dimensions | 22 × 15 × 2 cm |
binding | Hardcover, Paperback |
Author |
Dr. Brajesh Verma |
Publisher |
Namya press |
Series |
Hardcover Paperback |
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